अंध विश्वासी चमत्कारों से बचना नई उपलब्धि

अंध विश्वासी चमत्कारों से बचना नई उपलब्धि

आलोक मेहता

यह क्या चमत्कार से कम है कि कोरोना महामारी पर भारत के किसी कोने से किसी नामी या कुख्यात बाबा, तांत्रिक आदि ने जादू मंतर, झाड़ फूंक, झंडे - तावीज आदि से जान बचाने के दावे नहीं किये। यदि कहीं किसी कोने में किया भी होगा तो सही नहीं निकल सकेगा। अन्यथा अपने देश में गावों, कस्बों से महानगरों, गरीब मजदूर से लेकर शीर्ष नेता अधिकारी इस तरह के अंध विश्वास में फंसकर स्वयं मुसीबत में पड़ते रहे और उनके नाम फोटो के दुरूपयोग से देश दुनिया ठगती रही। नटवर सिंह बहुत वरिष्ठ नेता और राजनयिक ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि भारतीय नेताओं के कारण ब्रिटैन की प्रधान मंत्री मारग्रेट थेचर तक कुख्यात तांत्रिक चंद्रास्वामी से प्रभावित हो गई थी। कोरोना संकट में दूर दराज के आदिवासी बड़े शहरों के मुकाबले अधिक सतर्कता और समझदारी से नियमों का पालन कर रहे हैं। प्रादेशिक समाचार चैनलों में उनके बारे में आई रिपोर्ट देखकर प्रसन्नता होती है। फिर भी यह स्वीकारना होगा कि भारत के हजारों गांवों, कस्बों के लाखों लोगों को साक्षर बनाने, अपने लिए अच्छा काम ले सकने , समाज की पुरानी कुरूतियों से बचाने के लिए सरकारों और सामाजिक संस्थाओं को निरंतर प्रयास करने होंगे | इसके बिना महामारी ही नहीं , सामन्य रोगों से बचाव एवं स्वस्थ्य जीवन के लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सकता है।

पढ़ें- महाशक्तियों को भारत से अधिक आया पसीना

आश्चर्य इस बात पर अवश्य हुआ कि केंद्र के जल शक्ति मंत्रालय ने पता नहीं किसके आग्रह पर भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद् से सिफारिश कर दी कि कोरोना के इलाज के लिए गंगा जल के उपयोग पर भी विचार  किया जाए। गनीमत है कि परिषद् ने तत्काल इस सिफारिश को अस्वीकार कर दिया और कहा कि गंगा जल के लिए इस तरह

का शोध अध्यययन नहीं हुआ है। निश्चित रूप से गंगा जल को पवित्र माना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में सारे प्रयासों के बावजूद गंगा को पूरी तरह प्रदूषण मुक्त नहीं किया जा सका और न ही उसके जल से उपचार को कोई फार्मूला सामने आया था। प्राम्भिक दौर में कुछ नेताओं ने भी अनर्गल बयान दिए थे, लेकिन बाद में शांत हो गए। उन्हें अपनी जान की भी चिंता है। दूसरी तरफ कुछ स्थानों पर विभिन्न धर्मों के लोगों ने अपनी प्रार्थनाओं के लिए नियम कानून तोड़ने के प्रयास किये। विशाल देश में इसे अपवाद ही माना जायेगा।

कोरोना महामारी के संकट ने समस्याएं बढ़ाने के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने एवं नए तरीकों, संसाधनों का महत्व सरकार और समाज को समझा दिया है। मुंबई, दिल्ली ही नहीं इंदौर, उज्जैन, पुणे, जयपुर, जोधपुर, कानपुर, पटना जैसे शहरों में भी सरकारी और निजी अस्पतालों की कमियों, डॉक्टरों की कमी गंभीर ढंग से उजागर की है। यहाँ तक कि निजी क्षेत्रों के कई मेडिकल कॉलेज की दुर्दशा की असलियत सामने आ गई है। इन संस्थाओं को मान्यता देने, प्रवेश के लिए 50 लाख से 2 करोड़ तक वसूलने के मामले सामने आते रहे, लेकिन वे दुकानें चलाते रहे। अब उनकी पोल खुलने के बाद साड़ी व्यवस्था को ठीक करने की जरुरत होगी। इसी तरह छोटे कस्बों गांवों में सक्रिय आशा हेल्थ वर्कर्स और आंगनवाड़ियों में काम करने वाली लाखों महिलाओं ने कोरोना संकट में सहायता, सर्वे, जागरूकता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी सेवा शर्तों में सुधार, मानदेय में कुछ सम्मानजनक राशि देने तथा समय समय पर प्रशिक्षण के लिए राज्य सरकारों को नई नीति बनानी होगी। साक्षरता के लिए नेहरू, इंदिरा, राजीव राज से अटल और मोदी सरकार तक कई योजनाएं बनी, बदली या नए अभियान शुरू हुए, लेकिन अब स्वस्थ्य भारत के लिए न्यूनतम साक्षरता (प्रौढ़ शिक्षा सहित) के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी प्रयासों की जरुरत होगी। इस सन्दर्भ में हाल ही में रोटरी इंडिया द्वारा एक दो राज्यों में शुरू किए गए भारत साक्षरता मिशन को मॉडल के रूप में देखा जा सकता है। सबसे अच्छी बात यह है कि इस अभियान के लिए वह सरकार से कोई आर्थिक अनुदान भी नहीं मांग रही है। इसका नाम दिया गया है - टी इ ए सी एच यानि टीचर, सपोर्ट, इ लर्निंग, एडल्ट लिटरेसी, चाइल्ड डेवलपमेंट और हैप्पी स्कूल्स। उनके संयोजकों का तो दवा यह है कि वे देश के 30 हजार स्कूलों में इ लर्निंग की सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं, जिससे करीब 65 लाख बच्चों को यह सुविधा दी जा रही है। उन्होंने एन सी इ आर टी के पाठ्यक्रम के पहली से दसवीं तक की इ लर्निंग का इंजाम कर दिया है। अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं विशेष रूचि लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के विद्यादान कार्यक्रम के तहत इसका विस्तार कर देश भर में एक निश्चित समयावधि में सम्पूर्ण साक्षरता का लक्ष्य पूरा करवा सकते  हैं। डिजिटल युग में यह एक नई क्रांति का अवसर भी है। इस संकट के दौरान लाखों बच्चों को डिजिटल माध्यम से पढ़ाने में शिक्षक समुदाय ने अद्भुत भूमिका निभाई है। स्वास्थ्य कर्मियों और पुलिस - सुरक्षा कर्मियों के साथ यह भी अभिनंदनीय योगदान है।

पढ़ें- संजीवनी के पहाड़ पर विजय पताका की उम्मीद

संकट के दौरान क्षेत्रीय स्तर के मीडिया, पब्लिक ब्राडकास्टिंग और पुस्तकों का महत्व अधिक सामने आ गया है। इस काम में सामाजिक शैक्षणिक संस्थाओं को सरकार से सहयोग और प्रोत्साहन की जरुरत है। दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि पिछले डेढ़ वर्ष में केंद्र के सहयोग से प्रदेशों के सैंकड़ों पुस्तकालयों के लिए भेजी जाने वाली योजना के तहत बजट में प्रावधान की गई धनराशि को खर्च ही नहीं किया गया। केंद्र सरकार का राजाराममोहन रॉय लाइब्रेरी संस्थान ठप्प पड़ा है। संस्कृति मंत्रालय क्या केवल तीर्थ यात्राओं को संस्कृति समझता है? पब्लिक ब्राडकास्टिंग का हाल यह है कि महीनों से प्रसार भारती केवल सरकारी बाबुओं के हाथों में है। दूरदर्शन का तो महानिदेशक भी नहीं है। लोक सभा राज्य सभा टी वी के विलय की फाइलें इधर उधर घूमते रहने से संसद के नाम पर चलने वाला चैनल लँगड़ाई स्थिति और वित्तीय समस्याओं से जूझ रहा है। यह ठीक है कि अब देश में तीन सौ से अधिक समाचार चैनल हैं, तो आप स्वायत्त व्यवस्था का चोला पहनाए रखने के बजाय ऐसी संस्थओंओं को सरकारी कर दें या जब निजी क्षेत्र का मीडिया भी जागरूकता अभियान में भागीदारी करता है, तो सरकारी खजाने से उसे अधिक सहयोग करें। संकट के दौर में दूरगामी हितों के लिए भी निरंतर ध्यान देने कि आवध्यकता है। अरबों के पूंजी निवेश के साथ ज्ञान का विस्तार नहीं होगा तो पूंजी भी व्यर्थ हो जाएगी। कोरोना पर दुनिया को दुखी करने वाले चीन ने अंतरिक्ष में मानव भेजने की तैयारी में एक दिन भी नहीं होने दी है। हजारों लाशों के ढेर लग जाने पर भी अमेरिका और ब्रिटैन उद्योग, बाजार के साथ स्कूल - कॉलेज खोलने जा रहे हैं। हम क्या केवल संकट, समस्या, विपक्ष की राजनीति से निपटने में समय गुजारते हुए ज्ञान की रोशनी का इंतजार करते रहेंगे?

 

इसे भी पढ़ें-

परीक्षा भारतीय चिकित्सा विज्ञान की भी

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।